वैशाख अमावस्या की पौराणिक कथा
*वैशाख अमावस्या के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। कथा कुछ यूं है कि बहुत समय पहले की बात है। 👉धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति के थे। व्रत-उपवास करते रहते, ऋषि-मुनियों का आदर करते व उनसे ज्ञान ग्रहण करते। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। अन्य युगों में जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता था उससे कहीं अधिक पुण्य फल इस घोर कलियुग में भगवान का नाम सुमिरन करने से मिल जाता है।*
*धर्मवर्ण ने इसे आत्मसात कर लिया और सांसारिकता से विरक्त होकर सन्यास लेकर भ्रमण करने लगा। एक दिन भ्रमण करते-करते वह पितृलोक जा पंहुचा। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई है क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करे। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। तत्पश्चात धर्मवर्ण अपने सांसारिक जीवन में वापस लौट आया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।*
*पितृ गायत्री मंत्र -*
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*ओम देवताभ्यः पित्रभ्यश्च महा योगिभ्य एव च।*
*नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ।k।*
*ब्रह्मपुराण से पितृ गायत्री मंत्र-*
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*👉पितृ पक्ष में पितृ गायत्री मंत्र की कम से कम 1 माला का जप प्रतिदिन सूर्योदय के समय करना चाहिए।*
*|| पितृ देवाय नम:||*
*व्यास उज्जैन से-✍*(Sunil Vyas)