देश का सबसे बड़ा बलात्कार कांड देश का सबसे बड़ा बलात्कार कांड –

देश का सबसे बड़ा बलात्कार कांड देश का सबसे बड़ा बलात्कार कांड –

देश का सबसे बड़ा बलात्कार कांड का घिनोना सच जिसका कोर्ट ने फैसला अब सुनाया। फैसला ये है कि 250 बलात्कार की सजा 10 साल। ये रेप केवल हिंदू लड़कियों से हुआ था, मुस्लिम लड़कियों से नहीं।रेप की गई लड़कियों में आईएएस, आईपीएस की बेटियां भी थीं. ये सब किया गया अश्लील फोटो खींच कर. पहले एक लड़की, फिर दूसरी और ऐसे करके सौ से ऊपर लड़कियों के साथ हुई ये हरकत. ये लड़कियां किसी गरीब या मिडिल क्लास बेबस घरों से नहीं, बल्कि अजमेर के जाने-माने घरों से आने वाली बच्चियां थीं. सोफ़िया अजमेर के जाने-माने प्राइवेट स्कूलों में से एक है.

India rape cases

चेन के बारे में तो आपको पता ही होगा। एक के बाद एक को जोड़ कर चेन या श्रृंखला बनाई जाती है। मजहबी ठेकेदार के वेश में रह रहे दरिंदों ने यही तरीका अपनाया था। किसी युवती को अपने जाल में फँसाओ, उससे सम्बन्ध बनाओ, उसकी नग्न व आपत्तिजनक तस्वीरें ले लो, फिर उसका प्रयोग कर के उसकी किसी दोस्त को फाँसो, फिर उसके साथ ऐसा करो और फिर उसकी किसी दोस्त के साथ- यही उस गैंग का तरीका था।ajmer dargaah rape case1

अधिकारी बोल देते हैं कि पता तो पहले से था. लेकिन कम्युनल टेंशन ना हो जाये कोई कदम नहीं उठाया गया.

सन् 1992 लगभग 25 साल पहले सोफिया गर्ल्स स्कूल अजमेर की लगभग 250 से ज्यादा हिन्दू लडकियों का रेप जिन्हें लव जिहाद/प्रेमजाल में फंसा कर,न केवल सामूहिक बलात्कार किया ! बल्कि हर लड़की का रेप कर उसकी फ्रेंड/भाभी/बहन आदि को लाने को कहा, एक पूरा रेप चेन सिस्टम बनाया जिसमें पीड़ितों की न्यूड तस्वीरें लेकर उनका व्यावसायिक रूप से प्रयोग भी किया गया। फारूक चिश्ती,नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती, इस बलात्कार कांड के मुख्य आरोपी थे जो कांग्रेस के कद्दावर नेता भी थे।
ये वही लोग थे, जिन पर ख्वाजा चिश्ती दरगाह की देखरेख की जिम्मेदारी थी। ये वही लोग थे, जो ख़ुद को चिश्ती का वंशज मानते हैं। उन पर हाथ डालने से पहले प्रशासन को भी सोचना पड़ता। अंदरखाने में बाबुओं को ये बातें पता होने के बावजूद इस पर पर्दा पड़ा रहा।
फारूक चिश्ती ने सोफिया गर्ल्स स्कूल की 1 हिन्दू लड़की को प्रेमजाल में फंसा कर एक दिन फार्म हाउस पर ले जा कर सामूहिक बलात्कार करके, उसकी न्यूड तस्वीरें लीं
और तस्वीरो से ब्लैकमेल कर उस लड़की की सहेलियों को भी लाने को कहा, एक के बाद एक लड़की के साथ पहले वाली लड़की की तरह फार्म हाउस पर ले जाना बलात्कार करना न्यूड तस्वीरें लेना, ब्लैकमेल कर उसकी भी बहन/सहेलियों को फार्म हाउस पर लाने को कहना और उन लड़कियों के साथ भी यही घृणित कृत्य करना। इस चेन सिस्टम में लगभग 250 से ज्यादा लडकियों के साथ भी वही शर्मनाक कृत्य किया !
उस समय डिजिटल कैमरे नहीं रील होते थे, जिसे स्टूडियो में निकलवाना पड़ता था, वो जगह भी मुसलमानों कि थी, इन्होंने भी उनका बलात्कार किया और बाद में इनके मुस्लिम पड़ोसियों ने भी रेप किया।
ये भी कहा जाता है कि स्कूल की इन लड़कियों का व्यावसायिक प्रयोग होने लगा था, किसी को कोई काम करवाना होता तो वो इन बच्चियों को उन्हें सौंप देता, जिससे रेप करने में नेता,सरकारी अधिकारी भी शामिल हो गए थे !

मास्टरमाइंड थे कांग्रेस यूथ लीडर

इस स्कैंडल के मास्टरमाइंड थे फारूक चिस्ती, नफीस चिस्ती और अनवर चिस्ती. तीनों ही यूथ कांग्रेस के लीडर थे , अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम(केयरटेकर) चिश्ती परिवार था. फारूक प्रेसिडेंट की पोस्ट पर था.  खादिमों होने के कारण रेप करने वालों के पास राजनैतिक और धार्मिक, दोनों ही पॉवर थी. रेप की शिकार लड़कियां ज्यादतर हिंदू परिवारों से थीं. अधिकारियों को लगा कि केस का खुलासा होने से इसे ‘हिन्दू-मुस्लिम’ नाम देकर दंगे हो सकते हैं.

आगे चलकर ब्लैकमैलिंग में और भी लोग जुड़ते गये। आखिरी में कुल 18 ब्लैकमेलर्स हो गये। बलात्कार करने वाले इनसे तीन गुने। ये केवल सरकारी आंकड़े है हकीकत में इससे कई गुना ज्यादा थे।

इन लोगों में लैब के मालिक के साथ-साथ नेगटिव से फोटोज डेवेलप करने वाला टेकनिशि- यन भी था।यह ब्लैकमेलर्स स्वयं तो बलात्कार करते ही, अपने नजदीकी अन्य लोगों को भी “ओब्लाइज” करते थे।
इसे भारत का अब तक का सबसे बडा सेक्स स्कैंडल माना गया। लेकिन जो भी लड़ने के लिए आगे आता,उसे धमका कर बैठा दिया जाता, उनकी आवाज उठाने वाली स्वयंसेवी संस्था को भी भागना पड़ा। अधिकारियों ने कम्युनल टेंशन न हो जाये,इसका हवाला दे कर आरोपियों को बचाया।
करीब 400 से ज्यादा स्थानीय पत्रकारों ने परिवार वालो को ही परेशान करना शुरू कर दिया, जिससे कि मामला फैले नहीं, कभी परिवार वालो को जान से मारने कि धमकी दी गई तो पूरे खानदान की रेप और लूट की।
अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम(केयरटेकर) चिश्ती परिवार का खौफ इतना था, जिन लड़कियों की फोटोज खींची गई थीं,उनमें से कईयों ने सुसाइड कर लिया।एक समय अंतराल में 6-7 लड़कियां ने आत्महत्या की।
जिन पत्रकारों ने इसका खुलासा करने का प्रयास किया उनकी हत्या कर दी गई, पुलिस को मार दिया गया था। न सोसाइटी आगे आ रही थी, न उनके परिवार वाले।उस समय की ‘मोमबत्ती गैंग’भी लड़कियों की बजाय आरोपियों को सपोर्ट कर रही थी। डिप्रेस्ड होकर इन लड़कियों ने आत्म- हत्या जैसा कदम उठाया।एक ही स्कूल की लड़कियों का एक साथ सुसाइड करना खौफनाक सा था।kathua rape case in india ajmer
सब लड़कियां नाबालिग और 10वी,12वी में पढने वाली मासूम बच्चियां थी।आश्चर्य की बात यह कि रेप की गई लड़कियों में आईएएस, आईपीएस की बेटियां भी थीं।
ये सब किया गया अश्लील फोटो खींच कर। पहले एक लड़की, फिर दूसरी और ऐसे करके 250 से ऊपर लड़कियों के साथ हुई ये हरकत।ये लड़कियां किसी गरीब या मिडिल क्लास बेबस घरों से नहीं,बल्कि अजमेर के जाने-माने घरों से आने वाली बच्चियां थीं।
वो दौर सोशल मीडिया का नहीं पेड/ बिकाऊ मीडिया का था। फिर पच्चीस तीस साल पुरानी ख़बरें कौन याद रखता है ?
ये वो ख़बरें थी जिन्हें कांग्रेसी नेताओं ने वोट और तुष्टीकरण की राजनीति के लिए दबा दिया था !
पुलिस के कुछ अधिकारियों और इक्का दुक्का महिला संगठनों की कोशिशों के बावजूद लड़कियों के परिवार डर से आगे नहीं आ रहे थे।
इस गैंग में शामिल लोगों के कांग्रेसी नेताओं और खूंखार अपराधियों तथा चिश्तियों से कनेक्शन्स की वजह से लोगों ने मुंह नहीं खोला। बाद में फोटो और वीडियोज के जरिए तीस लड़कियों की शक्लें पहचानी गईं।
इनसे जाकर बात की गई।केस फाइल करने को कहा गया लेकिन सोसाइटी में बदनामी के नाम से बहुत परिवारों ने मना कर दिया। बारह लड़कियां ही केस फाइल करने को तैयार हुई।
बाद में धमकियां मिलने से इनमे से भी दस लड़कियां पीछे हट गई। बाकी बची दो लड़कियों ने ही केस आगे बढ़ाया।
इन लड़कियों ने सोलह आदमियों को पहचाना।*
ग्यारह लोगों को पुलिस ने अरेस्ट किया।
जिला कोर्ट ने आठ लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई।इसी बीच मुख्य आरोपियों में से फारूक चिश्ती का मानसिक संतुलन ठीक नहीं का सर्टिफिकेट पेश कर फांसी की सजा से बचा कर 10 साल की सजा का ही दंड मात्र दिया।
अजमेर बलात्कार काण्ड के अपराधी चिश्तियों में से कोई भी अब जेल में नहीं है।बाकी आप जोड़ते रह सकते हैं,एक बलात्कार की सजा 10 साल तो लगभग 250 बलात्कार की सजा कितनी होनी चाहिए थी ?
राजस्थान सरकार ने तब आरोपियों की सजा कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी तक लगा दी थी।
तीसरी बार हो रही है सुनवाई
1992 में दर्ज हुए इस कांड में तीसरी बार सुनवाई हो रही है। इससे पहले मूल मुकदमे में 1998 में फैसला आ गया था। तब तत्कालीन जिला एवं सेशन न्यायाधीश कन्हैयालाल व्यास ने आठ आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी जो बाद में दस साल कैद की सजा में तब्दील हो गई। प्रकरण के एक आरोपी फारूख चिश्ती के खिलाफ तब मुकदमा इस आधार पर नहीं चल पाया था कि वह सिजोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। बीमारी ठीक होने पर फारूख के खिलाफ अलग से सुनवाई हुई और उसे भी दोषी ठहराते हुए सजा दी गई।
इस बीच 2003 में प्रकरण का मुख्य आरोपी नफीस चिश्ती दिल्ली में पुलिस के हत्थे चढ़ा और इसके बाद 2010 में नसीम उर्फ टार्जन और इकबाल भाटी भी पकड़ में आ गए। सलीम चिश्ती की 2012 में गिरफ्तारी हुई वहीं जमीन को अग्रिम जमानत मिल गई। सलीम को छोड़कर बाकी चारों जमानत पर हैं। नफीस सहित पांच  के खिलाफ मुकदमा लंबित है। यानी तीसरी बार मुकदमे की सुनवाई हो रही है। अभी भी इस मामले के मुल्जिम अल्मास   महाराज और सोहेल गनी फरार हैं।
इसलिए पड़ रही है बार-बार गवाही की जरूरत
दरअसल इस मामले का 1992 में खुलासा हुआ तब पीडि़ताएं कॉलेज व स्कूलों की छात्राएं थी। उस समय छह साल में मुकदमे की सुनवाई चली और 1998 में निस्तारण हो गया। मुकदमे में तब पीडि़ताएं ने उनके खिलाफ हुई ज्यादती को अदालत में बयां किया और इसका नतीजा यह हुआ कि आठ आरोपियों को सजा मिली। कानूनविदों की माने तो एक बार गवाही होने के बाद दुबारा गवाही की जरूरत ऐसे ही मामलों में पड़ती है जब दूसरे मुल्जिम पकड़े जाते हैं।
अगर शुरूआती मुल्जिम बरी हो जाते तो बचाव पक्ष यानी नए पकड़े गए मुल्जिमों की ओर से पहली हुई गवाही को ही ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया जाता, क्योंकि इससे उनके बरी होने की राह भी खुल जाती। लेकिन चूंकि पहली बार और दूसरी बार सुनवाई में मुल्जिम दोषी ठहराए गए इसलिए बचाव पक्ष पूर्व में हुई गवाही को स्वीकार नहीं करने के लिए स्वतंत्र होता है। बचाव पक्ष को यह अधिकार होता है कि वह मुल्जिमों की प्रतिरक्षा के लिए गवाहों से नए सिरे से जिरह करे।
ऐसी स्थिति की वजह से इस मामले में तीसरी बार गवाही के लिए पीडि़ताओं को तलब किया जा रहा है। हालांकि तीसरी सुनवाई में भी नफीस चिश्ती पर लगे आरोपों तक पीडि़ताओं के बयान हो गए थे लेकिन अब दूसरे मुल्जिम जमीर और सलीम को लेकर गवाही होनी है।
25 साल में इस दौर से गुजरा मामला
1. 1992 में पूरे स्कैंडल का भांडा फूटा था तब पीड़ित युवतियों के बयान व अन्य सबूतों के आधार पर करीब दस आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
2. 1994 में आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम ने जमानत पर छूटने के बाद सुसाइड कर लिया।
3. केस का पहला फैसला मुकदमा दर्ज होने के छह साल बाद 1998 में आया। तत्कालीन जिला जज कन्हैयालाल व्यास ने आठ आरोपियों को उम्र कैद से दंडित किया।
4. इस फैसले से कुछ समय पहले प्रकरण के आरोपी फारूख चिश्ती को सिजोफ्रेनिया नाम मानसिक रोग होने की बात सामने आई और इसकी   वजह से उसके खिलाफ मुकदमा टल गया और बाद में उसकी अलग से सुनवाई हुई।
5. जिला न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील पेश की दी जहां से सजा कम कर दस साल कारावास कर दी गई।
6. सजा कम होने बाद मुल्जिमों सहित राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग अपील दायर की जिसका निस्तारण करते हुए दस साल की सजा यथावत रखी गई।
7. 2003 में दिल्ली के धौलाकुआं में नफीस चिश्ती को बुरके में गिरफ्तार किया गया और उसके खिलाफ मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। सुनवाई पूरी होने से पहले ही 2010 में नसीम और इकबाल भाटी पकड़े गए और फिर 2012 में सलीम चिश्ती हत्थे चढ़ गया। इस तरह पांच आरोपियों के खिलाफ नए सिरे से मुकदमा शुरू हुआ जो अब भी लंबित है।
8. हाल ही में सलीम चिश्ती ने हाईकोर्ट में जमानत अर्जी के लिए अर्जी लगाई थी, हाईकोर्ट ने अर्जी तो खारिज कर दी लेकिन विचारण अदालत को निर्देश दिए हैं कि प्रकरण की जल्द सुनवाई कर निस्तारण करें।
कठुआ रेप केस को मंदिर में बलात्कार,बलात्कारी हिन्दू कहकर बदनाम किया गया था खेद है कि आज कोई विकाऊ मीडिया वाला इसे दरगाह के खादिमों द्वारा बलात्कार और मुस्लिम बलात्कारी नहीं कहता !
मैं पूछना चाहता हूं, क्या ख्वाजा की मजार पर मन्नते मांगने वाले हिन्दू ख्वाजा से ये सवाल पूछेंगे कि जब सैकड़ों लड़कियों की अस्मत उनके ही वंशजों द्वारा लूटी जा रही थी तब वे कहाँ थे ?
किसकी मन्नत पूरी कर रहे थे ? ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नतें मांगने वालों को विचार करना चाहिए कि कहीं वे वहां जा कर पाप तो नहीं कर रहे ?*
गूगल पर ” *chisti rape kand ” likh kr search kare, details aa jayega.* #Ajmer Rape kand
Uncategorized